नाक को अन्य नामों जैसे घाणेन्द्रिय एवं नासिका के नाम से भी जाना जाता है मानव शरीर में नाक एक ऐसी इन्द्रिय है जिसके द्वारा हमें गंध का बोध होता है | नाक की बनावट के आधार पर नाक को मुख्य रूप से दो भागों बाहरी भाग जिसे बर्हिनसिका और भीतरी भाग जिसे नासागुहा कहा जाता है में विभाजित किया जा सकता है ।

बर्हिनसिका (External Nose):
बर्हिनसिका के भी दो भाग अर्थात कड़ा भाग एवं मुलायम भाग होते हैं कड़ा भाग हड्डियों से मिलकर बना हुआ होता है जबकि मुलायम भाग त्वचा से मिलकर बना हुआ होता है | इसके नीचे का भाग एक दीवार के द्वारा दो भागों में बंट जाता है जिन्हें नथूने कहते हैं । नाक की बनावट में नथूनों के अन्दर बाल उगे रहते हैं जो सांस लेने के दौरान छलनी के तौर पर कार्यरत रहते हैं | कहने का आशय यह है की जब हवा नथुनों के माध्यम से अन्दर जाती है तब यह बाल वायु में सम्मिलित धूल, मिटटी एवं छोटे छोटे कीड़ों को बाहर ही रोक लेते हैं जिससे वे अन्दर जाने में नाकामयाब रहते हैं | नथूनों के भीतरी पृष्ठ पर श्लैष्मिक कला चढ़ी रहती है । इस श्लैष्मिक कला में रक्त की कोशिकाओं का जाल फैला हुआ रहता है ।
नासागुहा (Nasal Fossa):
नाक की बनावट में दूसरा भाग नासागुहा है और नासागुहा की यदि हम बात करें तो नथूनों के नादर देखने से नाली जैसी जगह दिखाई देने वाली इस चीज को ही नासागुहा कहा जाता है | नासागुहा के बीच में एक पर्दा जैसा होता है । और इसके बीच में पर्दे पर भी श्लैष्मिक कला चढ़ी रहती है । नाक की बनावट में नाक के पिछले भाग का सीधे कण्ठ से संबंध होता है । इसलिए कभी-कभी कोई तरल पदार्थ इत्यादि पीते समय, हंसी आने पर, यह तरल पदार्थ धंसके नाक इत्यादि में भी आ जाता है ।
नाक के कार्य और उपयोगिता :
नाक के द्वारा हम सूंघते हैं । नथूनों में बाल उगते हैं जो छलनी का काम करते हैं जैसा की हम नाक की बनावट के अंतर्गत उपर्युक्त वाक्य में भी बता चुके हैं की जब वायु नाक द्वारा अंदर जाती है तो इन नथुनों के बाल वायु की धूल-मिट्टी और सूक्ष्म कीड़ों को बाहर ही रोक लेते हैं और अंदर नहीं जाने देते । जब वायु नाक और फेफड़ों में जाती है तो नथूनों की श्लैष्मिक कलां वाली रक्त कोशिकाओं में भरे हुए खून से गर्म होकर अन्दर जाती है । यदि इन रक्त कोशिकाओं के रक्त से गर्म होकर वायु अंदर न जाए और ठण्डी ही अंदर चली जाए तो नसें फूल जाएंगी और जुकाम हो जाएगा । नथूनों की श्लैष्मिक कला में अनेक ग्रंथियां होती है जिनमें बलगम बनता है । नाक का यह बलगम नथूनों को गीला रखता है । जुकाम होने पर ये ग्रंथियां अधिक परिमाण में बलगम बनाती है । नासागुहा में जो कला रहती है वहां गंध पहचानती है । नासागुहा के प्रत्येक कोष्ठ ऊपर वाले भाग से सांस ग्रहण करते हैं । नाक की बनावट में वायु का अधिक भाग इसी नीचे के भाग से होकर जाता है ।
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