डायबिटिक नेफरोपैथी नामक यह बीमारी किडनी अर्थात गुर्दों से जुड़ी हुई बीमारी है डायबिटीज अर्थात मधुमेह का असर जब गुर्दों यानिकी किडनी पर पड़ने लगता है तो धीरे धीरे यह डायबिटिक नेफरोपैथी का रूप धारण कर लेता है | दूसरे शब्दों में Diabetic Nephropathy को आप गुर्दों की वह दुष्कर स्थिति कह सकते हैं जिसमे किडनी यानिकी गुर्दे काम करना बंद कर देते हैं | इस स्थिति में किसी भी व्यक्ति का जैव रसायनिकी संतुलन बिगड़ जाता है एवं मनुष्य के शरीर में पानी की मात्रा बढ़ जाती है | जिसके कारण प्रभावित व्यक्ति के शरीर में सूजन आ जाती है | डायबिटिक नेफरोपैथी की स्थिति में मनुष्य के रक्त में यूरिया एवं क्रिएटिनिन की मात्रा बढ़ जाती है और शरीर में खून बनने की प्रक्रिया काफी धीमी होने लगती है | मनुष्य का जैव रसायनिकी संतुलन बिगड़ने के कारण व्यक्ति को काफी थकान का अनुभव एवं उबकाई आ सकती हैं | कहने का आशय यह है की Diabetic Nephropathy की स्थिति पैदा होने में जीवन बेहद मुश्किल में पड़ जाता है | इस स्थिति में रक्त की सफाई के लिए बार बार डायलसिस करवाना पड़ सकता है |

डायबिटिक नेफरोपैथी के लक्षण:
यद्यपि जैसा की हम पहले भी बता चुके हैं की यह किडनी की एक दुष्कर स्थिति है इसलिए आरंभिक दौर में इस तरह की समस्या का पता नहीं लग पाता है | लेकिन जैसे जैसे स्थिति बिगडती जाती है वैसे वैसे डायबिटिक नेफरोपैथी के लक्षण भी सामने आते जाते हैं इन्हीं में से कुछ लक्षण इस प्रकार से हैं |
- डायबिटिक नेफरोपैथी नामक इस बीमारी में शरीर में सूजन आ जाती है खास तौर पर हाथ पैर एवं चेहरे की सूजन इस ओर इशारा करती है |
- भूख कम लगना |
- मतली एवं उलटी आना
- व्यक्ति को ध्यान केन्द्रित करने एवं सोने में परेशानी का आभास हो सकता है |
- प्रभावित व्यक्ति को कमजोरी आने लगती है |
- यदि बीमारी अपने अंतिम चरण में हो तो प्रभावित व्यक्ति की त्वचा शुष्क होने के साथ उसमे खुजली भी हो सकती है |
- व्यक्ति की मांशपेशियों में ऐंठन का आभास हो सकता है |
जब प्रभावित व्यक्ति के गुर्दे यानिकी किडनियां काम करने में असमर्थ हो जाते हैं तो वे किडनियां शरीर से अपशिष्ट पदार्थों को बाहर निकालने में भी असमर्थ हो जाते हैं | और ऐसे ही एक स्थिति ऐसी आती है की मनुष्य के शरीर में इस प्रकार के जहरीले पदार्थ बहुत अधिक मात्रा में एकत्रित हो जाते हैं इस स्थिति को यूरीमिया के नाम से जाना जाता है |
डायबिटिक नेफरोपैथी की जांच कब और कैसे
भले ही भारतीय मूल के डायबिटीज से ग्रसित रोगियों में डायबिटिक नेफरोपैथी की दर पश्चिमी मूल के रोगियों की तुलना में काफी कम हो लेकिन फिर भी Association of physicians of India की मानें तो टाइप 2 डायबिटीज की शिकायत होने पर प्रत्येक साल एवं टाइप 1 डायबिटीज की शिकायत होने पर बीमारी के पांच साल पूरे होने के बाद से हर साल डायबिटिक नेफरोपैथी की जांच कराना आवश्यक होता है | हालांकि यह बीमारी कई अन्य रूपों में भी प्रकट हो सकती है लेकिन कोई व्यक्ति इस बीमारी से ग्रसित है की नहीं अर्थात इस बीमारी को ढूंढ निकालने का सबसे अच्छा एवं विश्वसनीय तरीका मूत्र में एल्ब्यूमिन की जांच करना यानिकी प्रोटीन की जांच करना है | क्योंकि एल्ब्यूमिन एक प्रोटीन होता है जिसे किडनी सामान्य रूप से मूत्र में व्यर्थ जाने से रोकते हैं | लेकिन जैसे जैसे ग्लाम्युरलाई पर रोग का असर बढ़ता जाता है ठीक वैसे वैसे गुर्दों की एल्ब्यूमिन को रोकने की क्षमता घटती जाती है | रोग के आरम्भ में पेशाब में बिलकुल थोड़ा थोड़ा एल्ब्यूमिन नामक प्रोटीन आना शुरू होता है | और यही शरीर के अन्दर शुरू हो चुके रोग डायबिटिक नेफरोपैथी का प्रथम प्रमाण होता है | यह माइक्रोएल्ब्यूमिनयूरिया नामक साधारण जांच में पकड़ में नहीं आता है इसलिए इसके लिए विशेष जांच की आवश्यकता होती है |
डायबिटिक नेफरोपैथी से बचने के उपाय:
किडनी को डायबिटीज के असर से बचाने के लिए सभी के लिए बेहद जरुरी है की वे इसके प्रति सावधानी बरतें | ब्लड शुगर पर नियंत्रण रखना एवं ब्लड प्रेशर एवं कोलेस्ट्रोल के सभी घटकों को भी सामान्य सीमा के दायरे में बनाये रखना भी बेहद जरुरी है | तम्बाकू एवं धुम्रपान का भी धमनियों पर बेहद बुरा असर पड़ता है इसलिए इनका सेवन भी गुर्दों के लिए नुकसानदेह ही होता है | इसलिए डायबिटिक नेफरोपैथी से बचने के लिए धूम्रपान एवं गुटखे का त्याग करना बेहद जरुरी है | यहाँ पर ध्यान देने वाली बात यह है की डायबिटिक नेफरोपैथी के शुरू होने के बावजूद भी यदि किसी भी व्यक्ति द्वारा समय रहते सावधानी बरती जाय तो स्थिति को बिगड़ने से बचाया जा सकता है | इसलिए बेहद जरुरी हो जाता है की सब कुछ सामान्य होने के बावजूद भी डायबिटीज के रोगियों को हर साल मूत्र की जांच अवश्य करानी चाहिए | इस रोग से बचने के लिए निम्न उपाय करें |
- अपना ब्लड शुगर नियंत्रण पर रखें यह भोजन से पहले 80-120mg/dl एवं सोने से पहले 100-140mg/dl होना चाहिए |
- अपने ब्लड प्रेशर को भी नियंत्रण में रखें ब्लड प्रेशर में सिस्टोलिक प्रेशर 130mm Hg से कम एवं डायस्टोलिक प्रेशर 85 mm Hg से कम होना चाहिए |
- कोलेस्ट्रोल पर नियंत्रण बनाना जरुरी है |
- धुम्रपान, तम्बाकू एवं गुटखे का त्याग कर दें |
- ब्लड प्रेशर को कम करने के लिए ऐस इन्हीबिटर दवाई का प्रयोग किया जा सकता है |
- भोजन में सीमित मात्रा में प्रोटीन का सेवन करें |
डायबिटिक नेफरोपैथी का ईलाज :
डायबिटिक नेफरोपैथी के ईलाज की बात करें तो इसकी गति को धीमा करने के लिए प्रभावित व्यक्ति का ब्लड प्रेशर एवं ब्लड शुगर का नियंत्रित होना बेहद जरुरी है | इसके लिए चिकित्सक द्वारा प्रभावित व्यक्ति को Angiotensin converting enzyme (ACE) inhibitors दवाइयां दी जा सकती हैं | इसके अलावा डायबिटिक नेफरोपैथी से ग्रसित व्यक्ति को खून साफ़ करने के लिए बार बार डायलिसिस भी करानी पड़ सकती है लेकिन डायलिसिस कराना इस समस्या का स्थायी हल नहीं है | ऐसे में इस समस्या से निजात पाने का एक ही हल होता है की बीमार गुर्दे अर्थात किडनी की जगह नई किडनी लगाई जाय | यद्यपि यह एक बेहद ही जटिल ओपरेशन होता है जो देश के कुछ गिने चुने चिकित्सा संस्थानों में ही संभव हो पाता है | रोपण के लिए गुर्दा जुटाना इस प्रक्रिया के दौरान आने वाली सबसे बड़ी समस्या होती है क्योंकि किडनी का प्रबंध या तो ऐसे मृत व्यक्ति जिसका ब्लड ग्रुप प्रभावित व्यक्ति से मैच करता हो से लिया जा सकता है या फिर परिवार वालों या किसी स्वस्थ रक्त सम्बन्धी से ही लिया जा सकता है | चूँकि इस ओपरेशन में बहुत पैसे लग जाते हैं इसलिए इसका फायदा केवल कुछ गिने चुने लोगों को ही मिल पाता है |
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