ग्लाइकोसलेटिड हीमोग्लोबीन नामक यह टेस्ट किसी बड़ी जाँच लेबोरेटरी में ही किया जा सकता है, पर इसमें यह खूबी है कि यह एक साथ पिछले ढाई-तीन महीनों की औसत ब्लड शुगर का पूरा अनुमान दे देता है । इसीलिए जिस समय डायबिटीज का पहली बार पता चलता है, उस समय इस जांच ग्लाइकोसलेटिड हीमोग्लोबीन द्वारा यह अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि मरीज की ब्लड शुगर बीते दो-तीन महीनों में कितनी बढ़ी हुई रही होगी, और किस प्रकार के उपचार से उसे सामान्य बनाया जा सकता है ।

ऐसे मरीज जो पहले से ही डायबिटीज का इलाज ले रहे हैं, उनके लिए भी हर तीन-तीन महीने पर यह ग्लाइकोसलेटिड हीमोग्लोबीन जाँच करा लेना उपयोगी होता है । ऐसा करने से रोग पर पूरी नजर रहती है और डॉक्टर समय से इलाज में जरूरी सुधार ला सकता है । यह टेस्ट शरीर के विभिन्न अंगों पर रोग के प्रभाव का आकलन करने की दृष्टि से भी बहुत उपयोगी है । इसके परिणामों के आधार पर यह समझा जा सकता है कि विभिन्न अंगों ने ब्लड शुगर के बढ़े होने की कितनी मार सही होगी । व्यापक अध्ययनों के बाद अब ग्लाइकोसलेटिड हीमोग्लोबीन की मात्रा देखकर यह भी कहा जा सकता है कि विगत 10-12 हफ्तों में ब्लड शुगर किस स्तर पर रही होगी । सामान्य रूप से ग्लाइकोसलेटिड हीमोग्लोबीन की मात्रा छह प्रतिशत से कम पर होनी चाहिए | लेकिन यदि डायबिटीज में यह सात प्रतिशत तक भी रहे तो इसे अच्छा माना जाता है | अगर इसकी मात्रा आठ प्रतिशत से अधिक हो तो इसका अभिप्राय होता है की रोगी को इलाज की बेहद आवश्यकता होने के साथ साथ इसमें सुधार की भी नितांत आवश्यकता होती है | इसके अलावा इसमें बड़े परिवर्तन की भी आवश्यकता होती है | ग्लाइकोसलेटिड हीमोग्लोबीन नामक यह टेस्ट डायबिटीज के रोगियों में ब्लड शुगर में हो रहे परिवर्तनों के आकलन में बेहद महत्वपूर्ण योगदान निभाता है |